BE EDUCATED के इस लेख में आज हम बात करेंगे अंगकोर वाट के बारे में जो की विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है| भारत के अलावा कई अन्य ऐसे देश है जहा पर हिन्दू धर्म के अनेक सुप्रसिद्ध मंदिर है| पूर्वी एशिया के देशो में पहले हिन्दू धर्मं काफी प्रचलित था| इंडोनेशिया में भी कई भव्य और सुंदर हिन्दू धर्म के मंदिर दिखने को मिलते है| यहां बने मंदिर इतने सुंदर और मन मोहक है की उनकी ख्याति देश विदेश में काफी प्रचलित है और लोग उसे देखेने के लिए जाते है|
अंगकोर वाट मंदिर विष्णु भगवान् को समर्पित है और इसका निर्माण खाम्मेर साम्राज्य के लिए किया गया था|अंगकोर वाट का मतलब ही “राज मंदिर” ऐसा होता है| यह मंदिर समयांतर में 12 वि शताब्दी के आसपास बौध धर्म में रूपांतरित हुआ| आज के इस लेख में हम इस मंदिर के पीछे की वो सारी कहानी बताएँगे जो शायद ही आपने सुनी होंगी| हमें आशा है की आपको यह पसंद आयेगा|
अंगकोर वाट मंदिर से जुड़ा इतिहास (History behind ANGKOR WAT temple)
अंगकोर वाट मंदिर का निर्माण खाम्मेर साम्राज्य के सबसे महान राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने किया था| सूर्यवर्मन ने उस साम्राज्य पर 1113 से लेकर 1150 तक शाशन किया था| उसने अपने समय में काफी सैन्य क्रांति और नवनिर्माण करवाया था इस लिए उसे इतिहासकार खाम्मेर साम्राज्य का महान शाशक मानते है|उसकी मृत्य चाम्पा शाशक के सामने युद्ध के दौरान हुई थी| उसके पूर्वज पहले भगवान् शिव को अपने आराध्य मानते थे लेकिन बाद में वे भगवान् विष्णु को अपना आराध्य मानने लगे थे और इसी कड़ी में सूर्यवर्मन द्वितीय ने यह राज मंदिर विष्णु भगवान् को समर्पित करने हेतु बनाने का प्रयास किया था| वह इस कार्य को पूर्ण नहीं कर शके थे लेकिन बाद में इस मंदिर का निर्माण उनके भांजे धरणीन्द्रवर्मन ने पूर्ण किया था|
अंगकोर वाट मंदिर की भव्यता (The grandeur of the temple of Angkor Wat)
यह मंदिर विश्व के किसीभी धार्मिक निर्माण से सबसे बड़ा है| इस मंदिर के मूल सिखर की ऊंचाई लगभग 64 meter के आसपास है| मंदिर इतना भव्य है की उसके मुख्य मंदिर के आलावा आठ अन्य सिखर है और जिनकी ऊंचाई लगभग 54 meter है| इस मंदिर की रक्षा भी एक चतुर्दिक खाई करती है जिसकी चौड़ाई लगभग ७०० फुट है। इस खाई को पार करने के लिए एक विशाल पुल निर्मित किया गया है जो की पश्चिम की और है| बाद में 1000 feet बड़ा दरवाजा भी है| मंदिर की बाहरी दिवार 3km लम्बी है और उस पर रामायण और महाभारत जैसे चित्रों का सुन्दर निर्माण किया गया है|
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इस मंदिर का निर्माण चोल वंश और गुप्त वंश के निर्माण से काफी मिलताजुलता है| मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, स्वर्ग और नरक, समुद्र मंथन के चित्र और कलाकृतिया, देव और दानव के बिच का युद्ध, महाभारत महा काव्य के कुछ चित्र और कलाकृति, हरिवंश पुराण,बलि और वामन से जुड़े चित्र तथ रामायण से जुड़े हुए अनेक शिलाचित्र हैं। इन चित्रों की श्रेणी में रावण वध के लिए देवताओं द्वारा भगवान् विष्णुकी की गयी पूजा से शुरू होती है। बाद सीता स्वयंवर का शिलाचित्र है। बाल्याकांड की भी महत्वपूर्ण घटना का भी चित्र है| राम भगवान् स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। उपरांत सुग्रीव और राम के मिलन और मैत्री का भी चित्र है। ऐसे ही पूरी रामायण की महत्वपूर्ण घटना का शिलाचित्रो में उल्लेख है| अंतिम चित्र में सीता अग्नि परीक्षा के बाद राम और सीता की घर वापसी का चित्र है|
ऐसा माना जाता है की इस मंदिर में सुबह और शाम की पूजा-आरती में एक साथ 700 से अधिक नृत्यांगना नृत्य कराती थी| और 150 से अधिक ब्राह्मणों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी| इसे पढ़कर हिआप इस मंदिर की भव्यता का कयास लगा सकेंगे|
यह मंदिर फिरसे कैसे मिला ?(How was this temple rediscovered?)
14 और 15वि शताब्दी के दौरान बौद्ध धर्म के लोगो ने इस मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया था| और बाद में जब उन्होंने इस मंदिर का प्रयोग बंध कर दिया था| काफी लम्बे समय तक इस मंदिर की कोई देखरेख न होने के कारण इस मंदिर के आसपास काफी पेड़ ने अपनी लता फैलादी और ढँक दिया था| लेकिन एक यूरोप के Insectologist ने एक पहले कभी न देखे हुए तितली का पीछा करते समय इस मंदिर की खोज की थी और बाद में इस मंदिर को फिर से पेड़ की लताओ और डाली से अलग किया और इसकी भव्यता फिर से लोगो को देखने को मिली|
हमें आशा है की आपको इस मंदिर के बारे में काफी अच्छी और रोचक जानकारी मिली होंगी अगर आप इस जानकारी से संतुष्ट है तो इसे अधिक से अधिक लोगो तक शेयर करे धन्यवाद|
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