क्या आप जानते है की अष्टांग योग क्या है(Ashtang yoga in Hindi) इसे कैसे किया जाता है और अष्टांगयोग करने के लाभ क्या है?(Benefit of Ashtang Yoga) अगर आप नहीं जानते तो यह जानकारी आपके लिए काफी लाभप्रद होने वाली है|
भारत में योग की परंपरा काफी लम्बे समय से प्रचलित है| यह हमारे ऋषि मुनि के द्वारा हमें दी गयी एक अमूल्य संपति है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है| अगर हम सही मायने में देखे तो योग का मतलब है जीवन जीने की कला | भारतीय संस्कृति में छह दर्शन शास्त्रों का वर्णन किया गया है, जिसमे योग को एक शास्त्र के रूप में देखा जाता है|
विज्ञानं को आधार बना कर ही महर्षि पतंजलि ने योग के लिए एक बहुत ही अच्छे ग्रन्थ “पतंजलि योगसूत्र” की रचना की थी| जब से पतंजलि ने इस “पतंजलि योगसूत्र” की रचना की है तब से वह मनुष्य की जीवन में चितशुद्धि का एक अच्छा साधन बन गया है|
मानव जीवन का विशिष्ट लक्ष्य क्या है और अष्टांग योग से वह कैसे पूर्ण होता है|
हमारे जीवन में कई तरह के लक्ष्य होते है लेकिन उनमे से जो कुछ ख़ास होते है वह विशिष्ट लक्ष्य के रूप में जाने जाते है| सम्पति को प्राप्त करना, संतति को प्राप्त करना, यश और कीर्ति को प्राप्त करना यह सब जीवन के परिपेक्ष्य में सामान्य लक्ष्य के सामान होते है| विशिष्ट लक्ष्य में जन्म-मृत्यु के इस बंधन में से मुक्त होना, जिस पर सबसे अधिक विश्वास हो ऐसे भगवान् को प्राप्त करना और जीवन का सही आनंद प्राप्त करना ये सब विशिष्ट लक्ष्य है|
विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने में भी कई तरह के मार्ग दिए गए है जिसमे एक मार्ग है योग| और योग में भी कई तरह की शाखा है जैसे की कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, हठयोग, और अष्टांग योग| इन सभी के मार्ग भिन्न भिन्न है लेकिन सभी का गंतव्य एक ही है| आज के इस लेख में हम आपको सिर्फ अष्टांग योग पर ही इनफार्मेशन देंगे अन्य विषय पर फिर कभी लेख लेकर आपके सामने प्रस्तुत करेंगे|
इसे अष्टांगयोग के नाम से क्यों जाना जाता है
अष्टांग योग का सबसे पहला विवरण महर्षि पतंजलि के ग्रन्थ “पतंजलि योगसूत्र ” में मिलता है| इसमे योगको अलग अलग आठ अंगो के द्वारा अच्छे से संजय है इस लिए इसे अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है| महर्षि पतंजलि ने उनके ग्रन्थ में साधनपाद प्रकरण के 29वे सूत्र से विभूतिपाद प्रकरण के 3 सूत्र तक अष्टांग योग का विवरण किया है| जिसमे उन्होंने निम्न लिखित आठ योग के अंगो को दर्शाया है जिसे अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है|
पतंजलि योगसूत्र में दिया गया सूत्र जो की विवरण करता है योग के आठ अंगो को
“यमनियमासन प्राणायाम प्रत्याहारधारणा ध्यान समाधियोडष्टावांगानि |“
अष्टांग योग के आठ अंग निम्न लिखित है|
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधी
अष्टांगयोग का विभाजन
अष्टांगयोग को आसानी से समजने के लिए उसके कार्य के अनुसार दो भागो में विभाजित किये जाते है जो की निचे दिए गए है|
- बहिरंग अष्टांगयोग
- अंतरंग अष्टांगयोग
बहिरंग अष्टांगयोग | अंतरंग अष्टांगयोग |
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अष्टांगयोग के पहले पांच अंगो को बहिरंग अष्टांगयोग कहा जाता है| | अष्टांगयोग के अंतिम तिन अंगो को अंतरंग अष्टांग योग माना जाता है| |
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार को बहिरंग अष्टांगयोग माना जाता है| | धारणा, ध्यान और समाधि अंतरंग अष्टांगयोग है| |
यह सभी अंग शरीर की बहारी क्रिया से सम्बंधित होने के कारण इसे बहिरंग अष्टांगयोग कहा जाता है | यह सभी अंग शरीर की आतंरिक क्रिया से सम्बंधित होने के कारण इसे अंतरंग अष्टांगयोग कहा जाता है| |
अष्टांग योग के सभी प्रकारों की विशेष समज
यम – अष्टांग योग
यह अष्टांगयोग का प्रथम स्टेप माना जाता है| यम का मुख्य कार्य होता है की इस प्रक्रिया के माध्यम से इन्द्रियों पर संयम बनाना और मन पर विजय प्राप्त करना| यम के इस कार्य के लिए पांच तरह के यम को बताया गया है| जो की इस प्रकार से है|
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्यं
- अपरिग्रह
अहिंसा: अहिंसा का अर्थ होता है किसी भी परिस्थिति में खुद को या अन्य किसी की दुःख न पहुचाना| योग में अहिंसा को दोनों रूप से देखा जाता है मूल रूप से और शुक्ष्म रूप से भी| किसी भी जिव को किसी भी परिस्थिति में मन से कर्म और वाणी से हानि नहीं पहुचाना ही अहिंसा है| यह अच्छे से पालन करने पर योग के इस पथ पर जल्दी से आगे बढ़ा जा सकता है|
हमारे शास्त्रों में भी अहिंसा को विशेष स्थान दिया है और “अहिंसा परमो धर्म” (अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है) को स्वीकार किया है| अहिंसा से मोह, क्रोध, लोभ का नाश होता है| इस पथ में आगे बढ़ने के लिए मन, कर्म और वचन से अहिंसा का पालन करना चाहिए|
सत्य बोलना| जीवन के सही मूल्यों का स्वीकार कर जूठ का सम्पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए| अष्टांगयोग के इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए सत्य की सही परिभाषा को समजना जरूरी है| स्वार्थी बन कर असत्य बोलना अष्टांगयोग में पूर्ण रूप से वर्जित है| असत्य से मन अशांति की अनुभूति करता है जब की सत्य से मन प्रसन्न रहता है|
अस्तेय का अर्थ होता है चोरी नहीं करनी चाहिए| असते को समजने के लिए अधिकार को समजना चाहिए| जिस पर अधिकार न होने के बावजूद भी अधिकार को प्राप्त करना भी चोरी है| अपने कर्तव्य को सही से निर्वहन नहीं करना भी चोरी है| अस्तेय का विचार सूक्ष्म रूप में करना चाहिए| अष्टांगयोग में चोरी से भी बचना चाहिए|
ब्रह्मचर्य का विशालकाय अर्थ है लेकिन सामान्य तरु पर इसे सिर्फ स्त्री के सहवास तक ही सिमित रखा गया है| ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म की प्राप्ति करने के लिए जो बी आवश्यक कार्य करना| ब्रह्मचर्य में सभी इन्द्रियों को वश में रखना होता है और सयमपूर्ण वर्ताव करना होता है| ब्रह्मचर्य का पालन भी मन कर्म और वचन से होना चाहिए| ब्रह्मचर्यथी अध्यात्मिक प्रगति को जड़प से की जा सकती है|
अपरिग्रह में संग्रह करना वर्जित है| जरूरत के अलावा किसी भी चीज को अधिक संग्रह करना नहीं चाहिए| संग्रह करना लोभ की वृति को जन्म देता है| अपरिग्रह की भावना बढ़ने से जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है|
इन्द्रिय और मन पर विजय पाने और अष्टांगयोग में आगे बढ़ने के लिए महर्षि पतंजलि के द्वारा इस पांच यम को बताया है| जिसके मार्ग पर चलने से जीवन में सुख और समृद्धि भी प्राप्ति होती है|
नियम – अष्टांग योग
महर्षि पतंजलि के द्वारा अष्टांगयोग में दूसरा योग नियम बताया है| नियम में भी यम के जैसे पांच नियम दिए गये है| जीवन के विकास को साधने के लिए निम्न लिखित पांच नियम का पालन करना चाहिए|
- शौच
- संतोष
- तप
- स्वाध्याय
- इश्वर प्रणिधान
नियम की विस्तार से समज
शौच का सामान्य अर्थ शुद्धि और पवित्रता| शुद्धि को दो प्रकार से विभाजित किया जाता है बाह्य शुद्धि और आतंरिक शुद्धि| व्यक्ति की बाह्य शुद्धि के साथ आतंरिक शुद्धि भी होनी आवश्यक है| आतंरिक शुद्धि में मन की शुद्धि के द्वारा इर्षा, द्वेष और दुःख के दूषण को दूर करना प्रथम नियम है|
संतोष का अर्थ है जिस भी परिस्थिति है उसमे प्रसन्नता का अनुभव करना| शरीर के महतम सुख की अनुभूति करने के लिए संतोष होना आवश्यक है| इच्छा से दुःख और संतोष से सुख होता है, अगर जीवन में सप्मुर्ण सुख को प्राप्त करना हो तो मन कर्म और वचन से जीवन में संतोषी बनना आवश्यक है|
तप का अर्थ है कठिन परिश्रम करना| जैसे सोना की शुद्धता के लिए उसे काफी ग्राम करना पड़ता है| उसी तरह से शरीर की अशुद्धि को दूर करने के लिए शरीर को भी तपाना आवश्यक है| निस्वार्थ रूप से किये गए तप से सिद्धि प्राप्त होती है और ताप के लिए शारीरिक और मानसिक परिश्रम करना आवश्यक है|
स्वाध्याय का अर्थ है स्व का अध्ययन करना| खुद के जीवन का अध्ययन करने को ही स्वाध्याय कहा जाता है| व्यक्ति को स्व की पहचान करने के लिए वेद और शास्त्रों का वांचन, इश्वर का जप और खुद के स्वभाव का अंतःकरण से निरिक्षण करना चाहिए| योग में प्रगति के लिए स्वाध्याय एक महत्व पूर्ण विषय है|
इश्वर प्रणिधान: प्रणिधान का अर्थ है धारण करना| इश्वर प्रणिधान का अर्थ है की इश्वर को धारण करना, इश्वर को स्थापित करना| योग में इश्वर प्रणिधान का अर्थ है की इश्वर के प्रति समर्पित हो जाना| इश्वर में विश्वास करने से योग के अभ्यास सरलता होती है| विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होती है|
आज के इस जटिल समय में यम और नियम अंग का पालन करना काफी मुश्किल है| यम और नियम के द्वारा चरित्र का विकास होता है| अष्टांग योग में मनुष्य को सिर्फ बाह्यरूप से ही नहीं परन्तु आंतरिकरूप से भी यम और नियम का पालन करना चाहिए| इसके पालन करने से उत्तम सामजिक वातावरण बनता है और व्यक्तित्व के गुण भी निखरते है|
आसन – अष्टांग योग
महर्षि पतंजलि के द्वारा आसन को अष्टांगयोग के तीसरे अंग के रूप में दर्शाया गया है| आसन का सामान्य अर्थ है की बैठक, विशिष्ट प्रकार की स्थिति में बेठना | लेकिन योग के सन्दर्भ में महर्षि पतंजलि के द्वारा आसन की एक शब्द में परिभाषा की है “स्थिरसुखामासनम” अर्थात स्थिरता के साथ सुख दायक स्थिति| महर्षि पतंजलि के द्वारा आसन को कष्ट पूर्वक करने पर कभी भी जोर प्रदान नहीं किया है| वे कहते है की कष्ट के बिना लम्बे समय तक शारीरिक और मानसिक स्थिरता के साथ शरीर का नियंत्रण आसन में खूब जरूरी|
आसन को तिन प्रकार में विभाजित किया जा सकता है, जो की निचे दिए गए है|
- ध्यानात्मक आसन
- स्वास्थ्य वर्धक आसन
- आरामदायक आसन
विविध प्रकार के आसन की विस्तार से समज
ध्यानात्मक आसन: जिस भी आसन को स्थिरता और सुख के साथ प्राणायाम और ध्यान के लिए उपयोग में लिया जाता हो उसे ध्यानात्मक आसन के रूप में जाना जाता है| इससे चंचल मन को शांति मिलती है और तनाव घटता है| इस आसन के मुख्य हेतु आध्यात्मिक उन्नति है| इसमे पद्मासन, वज्रासन, भद्रासन, स्वस्तिकासन का समावेश होता है|
स्वास्थ्य वर्धक आसन: जिन भी आसन का हेतु स्वास्थ्य को बढ़ाना है उसे स्वास्थ्य वर्धक आसन कहा जाता है| इस वर्ग में काफी सारे आसन का समावेश होता है| जिसमे सबसे अधिक पीठ, रीढ़ और पेट के अन्दर के अवयव पर अधिक जोर दिया गया है| इसमे उत्तानपादआसन, भुजंगासन, हलासन, धनुरासन, गोमुखासन, पवनमुक्तआसन समाहित होते है|
आरामदायक आसन: जिस आसन के द्वारा शरीर और मन की थकान को दूर किया जा सके और उसे आरामदायक आसन कहा जाता है| इसे दो स्वाथ्य वर्धक आसन के बिच में किया जाता है| जिससे स्वास्थ्य वर्धक आसन के कारण शरीर के अंगो पर जो तनाव उत्पन्न हुआ है उसे दूर किया जा सके| इसमे सवासन सबसे प्रचलित है|
प्राणायाम – अष्टांग योग
यह अष्टांगयोग का सबसे महत्वपूर्ण अंग गिना जाता है| इसके द्वारा शरीर के श्वास का नियमन करना होता है| महर्षि पतंजलि के द्वारा प्राणायाम के लिए यह सूत्र दिया है
“तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायामः”
इसका अर्थ होता है की श्वास की गति में विच्छेद करना ही प्राणायाम होता है| प्राणायाम पर हम आपको एक विशेष आर्टिकल देंगे जिसे आपको अधिक इनफार्मेशन देंगे| यह एक बड़ा विषय है|
प्रत्याहार – अष्टांग योग
इसे अष्टांगयोग का पांचवा अंग, बहिरंग अष्टांगयोग का अंतिम अंग और अतरंग अष्टांगयोग का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है| प्रत्याहार शब्द के साथ प्रति और आहार शब्द जुड़े हुए है| प्रति का अर्थ होता है की सामने और आहार का अर्थ होता है भोजन, खोराक| योग में प्रत्याहार का अर्थ होता है इन्द्रियों को उनके आहार के माध्यम से वश में लेना| प्रत्याहार पर भी हम आपको एक अलग से लेख दिया है जिसमे अधिक अच्छे से समजाया है|
धारणा – अष्टांग योग
धारणा अंतरंग अष्टांग योग का प्रथम step है जो की ध्यान और समाधि की अवस्था में पहोचने के लिए काफी महत्वपूर्ण है| धारणा और ध्यान के बिच का तफावत समजना काफी जरूरी है लेकिन बहोत कम लोग इसे समज सकते है| अभी के लिए आप इतना समजे की धरना में शरीर के आतारिक हिस्से पर मन को केन्द्रित करना होता है| महत्तम अनुभवी लोग ह्रदयद्वार पर ही ध्यान केन्द्रित करते है लेकिन साधक अपने अनुसार शरीर के अन्दर के किसी भी स्थान या चक्र को चुन सकता है|
महर्षि पतंजलि के धारणा के लिए इन शब्द में इसे परिभाषित किया है
“देशबन्धश्चितस्य धारणा”
अर्थात मन को किसी बाह्य विषय अथवा आतंरिक बिंदु पर एकाग्र करना धारणा है|
ध्यान – अष्टांग योग
यह अंतरंग अष्टांग योग का दूसरा और सबसे कठिन में से एक अंग है| इसमे प्रवेश करने के लिए आपको धारणा में से अवश्य निकलना पड़ता है| धारणा में सफल हुए व्यक्ति ही इसमे सफल हो पाते है| सीधे ध्यान में जाना असम्भव है और इसमे जाने का एक ही सुगम्य मार्ग एक ही है की धारणा के माध्यम से जाना|
किसी एक बिंदु पर धारणा करने के बाद एक समय पर ऐसी स्थिति बनती है की धारणा ध्यान में परिवर्तित होती है| अभी के लिए आप इतना ही समजे यह एक गहन विषय है और आपको जल्द ही इस विषय में कुछ आर्टिकल के माध्यम से समजायेंगे|
समाधि – अष्टांग योग
यह अंतरंग अष्टांग योग का तीसरा और अष्टांगयोग का अंतिम अंग है जिसके बाद व्यक्ति अपने विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है| समाधि एक ऐसी स्थिति है जहा पर पहुचना काफी कठिन है| यह एक ऐसी स्थिति है जिसमे ध्यान के मार्ग से आगे बढ़ा जा सकता है| महर्षि पतंजलि ने इसको परिभाषित करने के लिए एक सूत्र दिया है
“तवेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरुपशुन्यमिव समाधि:“|
अर्थ मात्र का आभास हो औए स्वयं का स्वरुप शुन्य हो इसे समाधि कहा जाता है| समाधि के कई प्रकार है जिसे हम आगे के लेख में विस्तार से समजेंगे|
Ashtanga yoga benefits in hindi | अष्टांगयोग के लाभ
अष्टांगयोग से कई प्रकार से लाभ होते है जैसे को शारीरिक लाभ, मानसिक और भावात्मक लाभ, और अध्यात्मिक लाभ|
शारीरिक लाभ: स्वस्थ्य शरीर के लिए अष्टांगयोग काफी उपयोगी एवम महत्वपूर्ण है| इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है और मांसपेशियों में भी मजबूती आती है| अष्टांगयोग शरीर में लचीलापन लाता है सहनशक्ति में भी इजाफा होता है| वजन को बढाने या कम करने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है|
मानसिक और भावात्मक लाभ: अष्टांगयोग से व्यक्ति मानसिक एवम भावनात्मक रूप से भी काफी मजबूत होता है| मस्तिष्क के सम्बन्धी परेशानी दूर करने में भी यह काफी मददरूप होता है| इससे दिमागी शक्ति बढती है| अष्टांगयोग का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है की इससे व्यक्ति को तनाव से भी निजाद मिलता है|
अध्यात्मिक लाभ: अष्टांगयोग से सबसे अधिक लाभ अध्यात्मिक क्षेत्र में होते है क्योंकि इस माध्यम से आत्मा के साथ जुड़ा जा सकता है| इससे आप एक सकारात्मक उर्जा को महसूस करेंगे| हमारे ऋषियों ने अष्टांगयोग का विकास इसी लाभ को आधार बनाकर किया है|
FAQ of Ashtang yoga in Hindi
पतंजलि के अनुसार अष्टांग योग क्या है?
महर्षि पतंजलि ने अष्टांगयोग क्या है उसकी व्याख्या “पतंजलि योगसूत्र” में दी है| जिसमे उन्होंने अष्टांगयोग के आठ प्रकार दिए है| यह आठ प्रकार कुछ इस तरह है|
पतंजलि के अनुसार अष्टांगयोग
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधी
योग में नियम क्या है?
नियम अष्टांग योग का एक भाग है| महर्षि पतंजलि ने कुछ नियम को पांच हिस्सों में विभाजित किया है जो की इस प्रकार है|
- शौच
- संतोष
- तप
- स्वाध्याय
- इश्वर प्रणिधान
अष्टांग योग की क्या उपयोगिता है?
अष्टांगयोग के कई सारे लाभ है जैसे की शारीरिक लाभ, मानसिक एवम भावनात्मक लाभ, और अध्यात्मिक लाभ| अष्टांगयोग करने से शरीर स्वास्थ्य अच्छा रहता है, दिमागी शक्ति और सहनशक्ति काफी अच्छी रहती है| एक सकारात्मक उर्जा का अनुभव कर सकते है| अध्यात्मिक लाभ यह है की इससे आत्मशक्ति बढती है और आत्मा के साथ जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है|
अष्टांग योग कैसे करें?
अष्टांगयोग को आठ भाग में विभाजित किया गया है जैसे की यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी| महर्षि पतंजलि के अनुसार इसे क्रम में करना आवश्यक है| किसी भी एक विषय में खुद को पूरी तरह से योग्य बनाकर ही आगे बढ़ना चाहिए|
अष्टांग योग कितने प्रकार के होते हैं?
अष्टांगयोग के आठ प्रकार है जो की इस तरह है|
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधी
अंतरंग योग क्या है?
अष्टांगयोग में अंतिम तिन प्रकार जिसमे जों भी योग करना पड़ता है वह शरीर के अन्दर होता है इसलिए उन तिन योग के समहू को अंतरंग योग के रूप में व्याख्यायित किया गया है| अष्टांगयोग के अंतर्गत अंतरंग योग में निचे दिए गयें प्रकार शामिल होते है|
- धारणा,
- ध्यान
- समाधि
योग दर्शन के सूत्रकार कौन है?
योग दर्शन के सूत्रकार महर्षि पतंजलि है| जिन्होंने योग के सम्बंधित काफी उपयोगी जानकारी इस ग्रन्थ में प्रदान की है| यह छः आस्तिक दर्शन शास्त्रों में से एक माना जाता है|
बहिरंग योग क्या है?
अष्टांगयोग में पहले पांच प्रकार जिसमे जों भी योग करना पड़ता है वह शरीर के बाहरी क्रिया पर आधारित होता है इसलिए इन पांच योग के समूह को बहिरंग योग के रूप में व्याख्यायित किया गया है| अष्टांगयोग के अंतर्गत बहिरंग योग में निचे दिए गयें प्रकार शामिल होते है|
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
योग दर्शन पर बुनियादी पुस्तक कौन सी है?
योग शास्त्रों पर कई ऋषि और महर्षिने अपने विचारों को पुस्तक और ग्रन्थ के माध्यम से प्रस्तुत किया है| लेकिन आधुनिक समय में योग से सन्दर्भ में बुनियादि पुस्तक “पतंजलि योगसूत्र” और “योग दर्शन” को माना जाता है|
तो यह था हमारा लेख अष्टांगयोग के विषय पर जहा हमने आपको अष्टांगयोग क्या है, उसमे कोनसे आठ अंग है| और इसे कैसे विस्तार से समजे उस पर अच्छी माहिती दी है| हमें आशा है की आपको हमारे द्वारा दी गयी अष्टांगयोग पर की यह इनफार्मेशन पसंद आई होगी|
अगर आपको इस विषय में कोई भी प्रश्न है तो हमें कमेंट में पूछ सकते है हम आपको उत्तर देना सौभाग्य समजेंगे| अगर आपको हमारा यह अष्टांगयोग का लेख पसंद आया हो तो अधिक से अधिक लोगो tak अवश्य शेयर करे ताकि सभी लोग इस विषय में जान सके|
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