Green Revolution in Hindi | हरित क्रांति क्या है जाने हिंदी में

Green Revolution in Hindi: क्या आप जानते है हरित क्रांति क्या है उसके जनक कौन है| यहाँ Green Revolution in Hindi की सारी महत्वपूर्ण जानकारी आपसे शेयर की गयी है|

Green Revolution in Hindi

Norman Borlaug जिन्हें हरित क्रांति के जनक के रूप में पुरे विश्व में जाना जाता है| उनके द्वारा गेहू की High Yielding Varieties (HYVs) में किये गए काम के कारण उन्हें 1970 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा भी गया था| दरअसल बात ये थी की जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तब जापान न्यूक्लियर हमलो के कारण पूरी तरह से बर्बाद हो चूका था| ऐसे में उसे जल्द से जल्द समृद्ध बनाने के लिए सिसिल सैल्मन कृषि निपज का सहारा लेने के बारे में सोचा| सबसे पहले उन्होंने गेहू की बड़े दानो वाली जाती “नोरिन” पर संशोधन हेतु उसे अमेरिका भेजा, नोरिन पर लम्बे समय तक रिसर्च चला और एक हाइब्रिड बीज बनाया गया जिसे “गेन्स” नामसे जाना जाता था|

बाद में Norman Borlaug जो की एक कृषि संशोधक थे, उन्होंने “गेन्स” को मेक्सिको की सबसे अच्छी गेहू की किस्म के साथ मिलकर एक नयी हाइब्रिड किस्म को बनाया जो की बाद में हरित क्रांति(Green Revolution) का आधार बना|

What is Green Revolution in Hindi?

1943 से 1970 के दशक के बिच कृषि के क्षेत्र में बहु क्रान्ति हुई जिसमे कई प्रकार की शोध हुई, नई तकनीक को खेती के साथ जोड़ा गया, बीज को हाइब्रिड बना कर नई शंकर जातो को बनाया गया जो अच्छी निपज देतो थी, सिंचाई क्षेत्र में भी बुनियादी ढाँचे को बदल कर नई नई पद्धिति को अपनाया गया, सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों का वितरण किया गया, जिसकी मदद से किसानो की निपज और आय में असाधारण उछाल देखा गया जिसे हरितक्रांति के रूप में जाना जाता है|

आसान भाषा में कहे तो “उन्नत बीजो, रासायनिक उर्वरकों के उपयोग, किसानों के प्रयास, बिजली की सुविधा, सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि आदि जैसे कारकों के कारण कृषि उत्पादों में असाधारण वृद्धि की घटना को ‘हरित क्रांति’ के रूप में जाना जाता है।”

History of Green Revolution in India | भारत में हरित क्रांति का इतिहास

भारत आजादी की लम्बी लड़ाई के बाद 1947 में आजाद हुआ था| उस वक्त से भारत में अन्न की समस्या बढ़ रही थी| तत्कालीन सरकार द्वारा कृषि के लिए कई सारी योजना को लागू किया लेकिन भारत की बढती जन संख्या भी एक बड़ी समस्या थी| 1961 के आसपास भारत में अकाल की स्थिति बनी हुई थी| भारत की इस स्थिति से लड़ने के लिए उस वक्त के कृषि मंत्री (एम एस स्वामीनाथन) ने Borlaug को बुलाया था| विविध विरोधो के बावजूद भारतीय सरकार ने CIMMYT से गेहू के बिज को इम्पोर्ट करने फैसला किया|

पंजाब की भूमि की निपज उत्पादन क्षमता और भौगोलिक स्थिति को मद्दे नजर रखते हुए प्रयोग के लिए चुना गया था| यही से भारत में भारत में हरित क्रांति(Green Revolution) की शुरुआत हुई थी|

जिस तरह विश्व में Norman Borlaug को हरित क्रांति का जनक माना गया उसी तरह भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में “एम एस स्वामीनाथन” को जाना जाता है| कृषि एवं खाद्य मन्त्री बाबू जगजीवन राम के द्वारा एम एस स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट को अच्छे से इम्प्लामेंट करने के कारण इसका अच्छा प्रभाव देखने को मिला था|

हरित क्रांति के घटक (Components of Green Revolution)

अभी तक हमने पढ़ा की हरित क्रांति क्या है और उसकी शुरुआत विश्व और भारत में कैसे हुई| अब हम उसके घटकों को समजते है जिससे ये हरित क्रान्ति कैसे इतनी प्रभावशाली रूपसे सफल हुई| हरित क्रांति के घटक कुछ इस प्रकार से है,

  • उच्च उपज देने वाले किस्म (HYV) के बीजों
  • कृषि उत्पादन में उर्वरकों, खादों और रसायनों का प्रयोग
  • एक ही समय पर दो या दो से अधिक फसलें उगाने की तकनीक
  • खेती का मशीनीकरण
  • परिवहन, सिंचाई, भंडारण के मामले में बेहतर बुनियादी सुविधाएं
  • मूल्य प्रोत्साहन
  • बेहतर वित्तीय सहायता

उच्च उपज देने वाले किस्म (HYV) के बीजों:

विविध संशोधित बिज का उपयोग हुआ| यह HYV किस्म के बिज जो की कम समय में परिपक्व होने वाले और उच्च उपज देने की क्षमता वाले होते थे|

कृषि उत्पादन में उर्वरकों, खादों और रसायनों का प्रयोग:

कृषि उत्पादन में उर्वरकों, खादों और रसायनों का प्रयोग शुरू हुआ जिससे फसल को विभिन्न रोगों क्र माध्यम से जो नुकशान होता था उससे बचा जा सका|

एक ही समय पर दो या दो से अधिक फसलें उगाने की तकनीक:

कई फसल पैटर्न जो किसानों को एक ही भूमि पर दो या दो से अधिक फसल उगाने की अनुमति देते हैं क्योंकि HYV बीज जल्दी परिपक्व होते हैं। इससे कुल उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिली।

खेती का मशीनीकरण:

कृषि में ट्रैक्टर, हार्वेस्टर पंप सेट आदि मशीनों के उपयोग से खेती का मशीनीकरण बड़े पैमाने पर किया गया।

परिवहन, सिंचाई, भंडारण के मामले में बेहतर बुनियादी सुविधाएं:

हरित क्रांति के दौर में बेहतर परिवहन, सिंचाई, भंडारण, विपणन सुविधाओं, ग्रामीण विद्युतीकरण के मामले में बेहतर बुनियादी सुविधाओं का विकास किया गया।

मूल्य प्रोत्साहन:

मूल्य प्रोत्साहन, जिसमें विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान शामिल है ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके। यह किसानों को नई प्रथाओं को अपनाने के लिए आविष्कारशील प्रदान करता है।

बेहतर वित्तीय सहायता:

वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों के व्यापक नेटवर्क के विकास और भारत में ग्रामीण वित्त के समन्वय के लिए एक शीर्ष बैंक के रूप में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना के साथ ऋण सुविधाओं के प्रसार के माध्यम से बेहतर वित्तीय सहायता।

हरित क्रांति का प्रभाव | Impact of Green Revolution

भारत में हरित क्रांति के कारण कृषि की उत्पादन क्षमता और उसकी गुणवत्ता दोनों में काफी असाधारण सुधार हुआ| यहाँ निचे हमने आपसे हरित क्रांति के कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव के बारे में आपसे जानकारी शेयर की है|

कृषि उत्पादन में शानदार वृद्धि:

हरित क्रान्ति के माध्यम से भारत में कृषि उत्पादन में असाधारण उछाल आया था| इसके परिणाम स्वरुप भारत की खाद्य आपूर्ति के लिए दुसरे देशो पर की निर्भरता कम हो गयी थी| भारत उस वक्त से पहले दुसरे क्रम का सबसे बड़ा आयातक देश था| बाद में भारत ने कुछ वर्ष जो की मानसून के खराब होने के लावा कभी खाद्यान्न को आयात नहीं किया|

उत्पादकता में सुधार

पहले के मुकाबले उत्पादकता में वृद्धि हुई थी| शुरुआत में यह वृद्धि सिर्फ गेहू और चावल में ही दिखती थी लेकिन धीरे धीरे सभी फसलो में हरित क्रांति के कारण उत्पादकता में वृद्धि हुई|

रोजगार में वृद्धि

हरित क्रान्ति ने किसानो की आय को बढाने के साथ उसके जुड़े क्षेत्र जैसे की मिलिंग, मार्केटिंग, वेयरहाउसिंग आदि में नए रोजगार का काफी सर्जन किया|

खाद्यान्न मूल्य स्थिरता

नई कृषि प्रौद्योगिकी को अपनाने से फसलों के उत्पादन और विपणन योग्य अधिशेष में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से खाद्यान्न जिसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता आई है।

कृषि के साथ जुड़े अन्य उद्योग को मजबूत करना

कृषि उत्पादन में वृद्धि ने उद्योग को आगतों की आपूर्ति के अर्थ में उद्योग के साथ कृषि क्षेत्र के आगे के जुड़ाव को मजबूत किया है। उद्योग के साथ पिछड़े जुड़ाव को भी बढ़ावा मिला है क्योंकि कृषि आधुनिकीकरण ने उद्योग द्वारा उत्पादित इनपुट की बड़ी मांग पैदा कर दी।

हरित क्रांति के साथ जुड़ी समस्या

नई कृषि रणनीति के परिणामस्वरूप किसानों के लिए उत्पादकता और आय में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण गरीबी में एक हद तक कमी आई है। लेकिन, क्रांति के परिणामस्वरूप बढ़ी हुई आय, व्यापक पारस्परिक और क्षेत्रीय असमानता और असमान संपत्ति वितरण हुआ। यहाँ हमने हरित क्रांति से जुडी कुछ प्रमुख समस्या के बारे में आपसे जानकारी शेयर की है|

ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत असमानताओं में वृद्धि

  • सिंचाई के पानी, उर्वरक, बीज और ऋण की बेहतर पहुंच के कारण बड़े खेतों के मालिक नई तकनीक के मुख्य अंगीकार थे। दूसरे शब्दों में, जटिल कृषि तकनीकों और आदानों की आवश्यकता को देखते हुए, हरित क्रांति से बड़े किसानों को लाभ होता है। छोटे किसान बड़े किसान से पिछड़ गए क्योंकि छोटे किसानों को पारंपरिक उत्पादन पद्धति पर निर्भर रहना पड़ता था। चूंकि अमीर किसान पहले से ही बेहतर ढंग से सुसज्जित थे, इसलिए हरित क्रांति अमीर और गरीब के बीच आय असमानताओं को बढ़ा देती है।
  • हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पाद की कम कीमत और उच्च इनपुट कीमतें हुईं, जिसने जमींदारों को किराए में वृद्धि करने या किरायेदारों को जमीन से बेदखल करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • मशीनीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों के लिए मजदूरी और रोजगार के अवसरों को कम कर दिया जिससे आय असमानताओं को और बढ़ाया गया।

बढ़ी हुई क्षेत्रीय विषमताएं

हरित क्रांति केवल सिंचित और उच्च क्षमता वाले वर्षा सिंचित क्षेत्रों में फैली। पर्याप्त पानी की पहुंच के बिना गांवों या क्षेत्रों को छोड़ दिया गया जिसने गोद लेने वालों और गैर-अपनाने वालों के बीच क्षेत्रीय असमानताओं को चौड़ा कर दिया। चूंकि, HYV बीजों को तकनीकी रूप से केवल सुनिश्चित जल आपूर्ति और रसायनों, उर्वरकों आदि जैसे अन्य आदानों की उपलब्धता के साथ ही भूमि में लागू किया जा सकता है।शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों में नई तकनीक के अनुप्रयोग को सरलता से खारिज किया जाता है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि जैसे राज्यों में अच्छी सिंचाई और अन्य बुनियादी सुविधाएं हैं, वे हरित क्रांति के लाभ प्राप्त करने और तेजी से आर्थिक विकास प्राप्त करने में सक्षम थे, जबकि अन्य राज्यों ने कृषि उत्पादन में धीमी वृद्धि दर्ज की है।

पर्यावरणीय क्षति

उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक और अनुचित उपयोग ने जलमार्ग को प्रदूषित कर दिया है, लाभकारी कीड़ों और वन्य जीवन को मार डाला है। अत्यधिक उपयोग से मिट्टी के पोषक तत्वों को तेजी से समाप्त कर दिया है। बड़े पैमाने पर सिंचाई प्रथाओं के कारण अंततः मिट्टी का क्षरण हुआ है। भूजल प्रथाओं में नाटकीय रूप से गिरावट आई है। इसके अलावा, कुछ प्रमुख फसलों पर भारी निर्भरता के कारण किसानों की जैव विविधता का नुकसान हुआ है। आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षण के अभाव और अत्यधिक निरक्षरता के कारण रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण ये समस्याएं बढ़ गईं।

प्रतिबंधित फसल कवरेज

HYV बीजों के उपयोग से जुड़ी नई कृषि रणनीति शुरू में गेहूं, मक्का और बाजरा तक सीमित थी। दूसरी प्रमुख फसल यानी चावल में इस बहुत बाद लागू किया गया। एक या दो खाद्यान्न फसल में पर्याप्त वृद्धि कुल कृषि उत्पादन में बड़ा अंतर नहीं ला सकती है। इस प्रकार नई तकनीक ने सीमित फसल कवरेज के कारण समग्र कृषि उत्पादन को बढ़ाने में महत्वहीन योगदान दिया। इसलिए जरूरी है कि सभी प्रमुख फसलों में क्रांतिकारी प्रयास किए जाएं। यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हरित क्रांति भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है जिसने इसे खाद्य सुरक्षा प्रदान की है। इसने अपने उत्पादन और उत्पादकता में सुधार के लिए कृषि में वैज्ञानिक प्रथाओं के अनुकूलन को शामिल किया है। इसने गरीबों को कम खाद्य कीमतों, प्रवास के अवसरों में वृद्धि और ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में अधिक रोजगार के रूप में लाभ प्रदान किया है। हालाँकि, हरित क्रांति को अपनाने वाले क्षेत्र और व्यक्तियों के बीच असमानताएँ और जो अपनाने में विफल रहे हैं, वे बदतर हो गए हैं। इसके अलावा, हरित क्रांति ने कई नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को जन्म दिया है।

यहाँ हमने आपसे हरित क्रांति(Green Revolution in Hindi) पर विस्तार से महत्वपूर्ण जानकारी दी है जैसे की Green Revolution क्या है? भारत में Green Revolution ने कैसे लाभ पहुचाया? Green Revolution के साथ क्या समस्या जुडी है? और Green Revolution के घटक क्या है| यहाँ दी गयी जानकारी से आपको कोई भी प्रश्न है तो आप हमें निचे दिए गए कमेंट बॉक्स में संपर्क कर सकते है|

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